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कितना खुन चुसोगे………

आवाज उठाओ
आवाज उठाओ
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देश की हालात बहुत नाजुक है। हर कोई बस अपना पेट भरने की सोच रहा है। किसी को किसी से कोई मतलब नही है। चाहे कोई भी रास्ता अपनाना पङे लेकिन धन संग्रह होना चाहिए। आये दिन अखबारों में टीवी पर दिखाया जा रहा है कि एक मामुली सा क्लर्क और करोङो रूपये की सम्पत्ति।

यह तो बात हुई सरकार के नोकरों की अब सरकार की ही बात करो तो प्रजा का दम निकालने के लिए ही हर पल अग्रसर रहती है। कभी किसी कर के रूप में तो कभी दुसरे रूप में। 1 लाख 76 हजार करोङ का सरकार का घाटा 2 जी में कराया और इसी तरह से 1 लाख करीब 63 करोङ का हवाई अड्डे आधुनिकरण के रूप में यह कैग की रिपोर्ट के अनुसार बता रहा हुं।   कोयले में इसी तरह का घोटाला। जयराम रमेश जी कहते हैं कि एलपीजी डीजल और केरोसीन के तो दाम तो बढाने ही पङेंगे क्योंकि हमे बजट सबसे कम मिलता है। एक हमारे यहां कहावत है कि जब खेत को बाङ ही खाने लगे तो कोन रक्षा करेगा। कई चैनल दिखा रहे है कि बीते साल में कितने हजार करोङ का फायदा इंडियन आयल एच पी और भारत पैट्रोलियम को हुआ है, और ये ही लोग दुहाई दे रहे हैं कि हमें इतना ज्यादा नुकसान हो रहा है। सरकार के मंत्री सलाह दे रहे हैं कि राज्य सरकार अपने टैक्स कम कर दे। कोई कुछ भी कर ले लेकिन केंद्र कुछ नही करेगा वो तो लोगों का इसी तरह से खुन पियेगा। इतने तंग तो देश की जनता अंग्रेजो के काल में भी नही थी। हां मुगल काल की थोङी सी याद आ रही है हो सकता है वो ही समय लाना सोच रहे हों कि जब हिंदुस्तान में ही हिंदुओं पर 16 संस्कारों पर भी कर लगाया जाता था। इन लोगों की पार नही बसा रही नही तो वो सब भी कर सकते हैं।

आ गया है वो समय………… सब एक ही आवाज में कहो की बस अब इंताह हो गयी है सब्र की, अब नही सह सकते। हम आजाद होते हुए भी गुलाम है।

मैं यह नही कह रहा कि की आग लगाओ। भगतसिंह की तरह भी नही करना की खुन का बदला खुन। लेकिन भुखा आदमी ……………………………

एक आम आदमी को ना तो 2जी से मतलब है ना सीडब्लयूजी किसी भी घोटाले से कोई लेना देना नही है, बेचारा गरीब आदमी तो अपने और परिवार की खातिर दो समय की रोटी जुटा ले वो बहुत बङी बात है। लेकिन रस्सी को कितना खिंचा जा सकता है कभी ना कभी तो टुटेगी ही।

एक कहानी सुना करते थे जो हमें कभी भी सत्य नही लगती थी लेकिन आज वो भी हमें सत्य दिखने लगी है।

एक बार कौरव और पांडवो के गुरू द्रोण के घर की हालत ऐसी थी की रोटी के लाले पङे हुए थे। एक दिन अस्वस्थामा जी जो बच्चे थे उन्होंने कहीं बाहर सुन कर आये की किसी दुसरे बच्चे ने कहा कि हमने तो दुध पिया है तो उसने भी घर पर आकर अपनी मां से जिद्द की उसे भी दुध चाहिए। बच्चा तो बच्चा होता है। तो उनकी मां ने कोई तो कहता है पानी में आटा मिलाकर कोई कहता है खङिया मिलाकर उनको पिलाया था। इस बात पर मुझे यकिन नही होता था लेकिन आज देश की हालत देखकर लगता है कि अगर किसी गरीब का बच्चा कभी जिद्द पकङ गया तो उसकी मां भी खङिया ही मिलाकर ना पिला दे। क्योंकि यह योजना आयोग के अनुसार तो जो लोग 29 रूपये यानि की 900 रूपये से भी कम कमा रहे हैं वो गरीब नही है।

और इनकी गणित इस प्रकार है दुध 40 रूपये चीनी 35 रूपये सब्जी 40 रूपये गैस सिलैंडर 400 आटा 20 रूपये जो लोग किराये पर रह रहे हैं कहीं भी दिल्ली में 1500 से कम मकान नही मिलता तो कैसे करेगा एक आम आदमी जिंदगी पुरी, उसके लिए तो सिर्फ दो ही रास्ते हैं या तो खुद मर जाये नही तो कुछ कर दिखाये। और आदमी स्वंय तो भुखा रह सकता है लेकिन बच्चों को नही देख सकता। बच्चों को बिलबिलाते देखेगा तो कुछ भी कर जायेगा।

मुझे तो ऐसा लग रहा है कि कहीं 1857 जैसी किसी क्रांति का उदगम ना हो जाये कोई भुखा मंगल पांडे ना बन जाये कोई भारत मां की बेटी रानी लक्ष्मी बाई की तरह से तलवार ना उठा ले। देश को बचाना है तो जो बङे बङे लोगों में धन की आग लगी हुई है उसे बुझाना होगा नही तो कहीं ऐसा ना हो जाये गरीबों के खुन से कमाया हुआ धन किसी भी काम ना आये।

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