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नारी रक्षा नारी सम्मान………………

आवाज उठाओ
आवाज उठाओ
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      इस शब्द को आपने जीवन में अनेको बार सुना होगा टी वी चैनलों पर अखबारों में सभाओं में नेता हो या संत यही चर्चा करते हैं महिला कल्याण महिला उत्थान…. अब तो ऊब गये हैं ये सब सुनकर सर्व प्रथम यह बात ही पता होना चाहिए की महिला कल्याण क्या है महिला उत्थान कैसे होगा….

मैंने कई महिला मंत्री के बयान पढे हैं जैसे महिलाओं को मिले समान दर्जा महिलाओं को विशेष आरक्षण.. ट्रेन में बस में हर जगह महिलाओं को सुविधा दे रखी है क्या यही है महिला आरक्षण क्या महिला रक्षा ऐसे ही होगी ……

एक तरफ तो आरक्षण दिया जा रहा है वहीं दुसरी ओर महिला बनने से पहले ही बच्ची को गर्भ में कुचल रहे हैं .. बसों में रेल में चुनावों में महिला का आरक्षण पक्का है तो दुसरी तरफ चलती गाङीयों में इसी महिला की बच्ची को हवस के भेङिये दरिंदगी से रोंद रहे हैं… महिलाओं को उठाने की बात सब कर रहे हैं वहीं दहेज के लालची उनको उठाने का काम कर रहे हैं कोई पंखे पर लटकी मिलती है तो कोई आग में स्वाहा हो रही है..

शहरों में कस्बो में और अब तो गांवो में भी इस समस्या पर विशेष बैठक होती हैं लेकिन परिणाम क्या है…… जस का तस, ढाक के पीन पात। अगर किसी ने भावुकतापुर्ण कोई शब्द बोल दिया तो हमारे भोले भाई तालीयां बजा देते हैं..

कार्यक्रम समाप्त हुआ खाना पीना किया और चले गये अपने अपने घर क्या इसी को महिला रक्षा या महिला कल्याण कहते हैं……… कहने को कोई  पिछे नही रहता, कोई कहता है की हमसे छोङकर दुसरा बेबस महिलाओं की सुन ही नही सकता, तो कोई कहता है हमने तो संक्लप ही किया है महिला रक्षा का. …क्या आज तक किसी की समझ आया की क्या है महिला रक्षा या महिला उत्थान… यह अक्षर जितना बोलने और पढने में आसान है सहज सा प्रतीत हो रहा है उतना ही गहरा और गूढ है.. यह रहस्मयी शब्द अगर एक प्रतिशत लोगो की भी समझ आ जाये तो दुनिया ही बदल जायेगी मेरी बातें आपको बोर सी लग रही होगी क्योंकि यहां कोई हास्य नही है ना.. दोस्तो यह विषय हास्य या तालियां बजाने का नही विचार करने का है चिंतन करने का है इसे थोङा गहराई से समझे किसी घर में चार पांच भाईयों की एक छोटी बहन है उसे कोई रास्ते में मामुली छेङ देता है तो सारे घर की पुरे परिवार की सुख शांति छु मंतर हो गयी अशांति, क्रोध और हिंसा ने अपना अधिपत्य जमा लिया सारे घर को अपने शिकंजे में ले लिया। क्या वह आरक्षण… क्या वे विशेष सुविधायें जो महिलाओं के कल्याण के नाम पर दी जा रही हैं उस घर में सुख शांति ला सकती हैं ..कभी नही…..

यही तो हो रहा है सारे देश में सारे संसार में जितना हम चाहते है की समाज में महिला सुरक्षित हो निर्भय हो उतना ही ज्यादा असुरक्षित होती जा रही हैं… पुरे समाज में राष्ट्र में जो अभद्रता अश्लीलता अनैतिकता फैल रही है उससे सब चिंतित है डरे हुए हैं जो हर तरफ हा हा कार मची हुई है त्राही त्राही कर रहे लोग अशांति हिंसा भङक रही है उन सबका एक ही कारण है महिलाओं का शोषण। बङे बङे शहरो में अपनी बच्चीयों की सुरक्षा को लेकर

कितने डरे हुए हैं कितने भयभीत हैं लोग। अगर सिर्फ महिलाऐं ही देश में सुरक्षीत  हो जाये तो यहां की यह मन मोहक हवा जो अब हमें काटने को आती है वही सुहावनी लगने लगेगी।

यह तो पुरातन काल से होता आया है की जब जब किसी अत्याचारी ने नारी को तङपाया है तो विस्व को बहुत बङी तबाही का सामना करना पङा है.. एक राक्षस हुआ है भोमासुर उसने 16000 कन्याऐं बन्धक बना रखी थी तो भाईयों भगवान को भी आना पङा था नारी की लाज बचाने के लिए..चारो तरफ पिङा है कष्ट है क्योंकि सबके घर में लङकीयां हैं । जब तक महिलाऐं लङकीयां सुरक्षीत नही होंगी अबोद्ध बच्चीयां महफुज नही होंगी। समाज देश और राष्ट्र अशांत रहेगा ही यह अभियान कोई मामुली नही है खाना तभी बनेगा जब आग पर पकाया जायेगा.. विस्व शांति या महिला सुरक्षा में जितना सहयोग महिलाओं का है उतना ही पुरूषों का भी हो तभी संभव है। अगर कोई महिला यह सोचे की हम ही केवल महिलाओं का कल्याण कर सकते हैं तो मेरे विचार से संभव नही है..

रक्षा बंधन एक बङा पवित्र त्योहार है बहन भाई की कलाई में राखी बांधती है और भाई उसे वचन देता है की तेरी रक्षा करूंगा.. हर घर में भाई भी है बहन भी हैं राखी भी बंध रही हैं तो भी रक्षा नही हो पा रही.. प्यारे दोस्तो सिर्फ बातों बातों से किसी भुखे का पेट नही भरेगा.. जिस किसी भी भाई को भी मेरी यह दिल की पुकार हाथ लगे तो अपनी योग्यता के अनुसार कार्य में लग जायें सफलता मिलेगी ही.. इसी संदर्भ में एक कहानी याद आ रही है एक बार एक जंगल में आग लग गयी जंगल में जो भी था कोई पानी डाल रही था तो कोई मिटटी जिसकी जितनी सामर्थ्य थी वो ऐसा ही कर रही था वही एक छोटी सी चिङिया अपनी चोंच में पानी लाती और आग पर डाल देती। ऊपर डाल पर एक बंदर बैठा हुआ दांत निकालकर कहता है अरी चिङिया तेरी चोंच के पानी से यह आग बुझेगी क्या……….

चिङिया ने बङी हलीमी प्यार से जबाब दिया बंदर मामा मुझे पता है कि मेरी चोंच के थोङे से पानी से यह आग नही बुझेगी लेकिन अगर कभी भविष्य में इस आग की चर्चा चलेगी तो मेरा नाम आग लगाने वालो में नही बुझाने वालो में आयेगा। कितनी समझदार और दुरदर्शी थी एक छोटी सी चिङीया हम तो फिर भी मानव हैं क्यों नही चिंतन करें माना की अशांति की आग का रूप बहुत विकराल हो चुका है लेकिन प्रयत्न यही करें की हमारा नाम भी बुझाने वालों में हो बस……………….

महिला रक्षा सिर्फ बातों से नही होगी करने से होगी घंटा दो घंटा भाषण बाजी की और खाना पीना किया घर चले जाने से कुछ नही होगा…

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